वैदिक सनातन परम्परा के अनुयाइयो के लिए शुभ मुहूर्त का बहुत महत्व हैं पंचाग में उपस्थित तिथियों के आधार पर ही सभी व्रत उपवास और पर्व मनाये जाते हैं/ पंचाग का प्रथम अंग ही तिथियां हैं

हमारे सनातन धर्म में चंद्र गणना के आधार पर 30 तिथियां हैं क्रमशः 15 तिथियां जब चन्द्रमा बढ़ता हैं यानी एक एक कर 16 कलाओ युक्त होता हैं और पूर्णिमा को पूर्ण कलाओ युक्त पूरा चन्द्रमा यानी full moon दीखता हैं इस 15 दिन के समय को शुक्ला पक्ष कहाँ जाता हैं, यानी अमावास्य के बाद से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष, वही पूर्णिमा के बाद से चंद्र कलाये घटती हैं जिसे आम भाषा में कहते हैं घटता चन्द्रमा और ये 15 दिन पूर्णिमा से अमावस्या के बीच का समय कृष्ण पक्ष कहलाता हैं

Tithi Devta

दोनों पक्षो की प्रथम तिथि प्रतिपदा होती हैं वही शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या होती हैं ये सभी तिथियां 19 घंटे से 24घंटे की होती हैं जो तिथियां 19 घंटे की हैं वह 24घंटे के एक दिन पूरा किये बिना ही एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के मध्य बदल जाती हैं

सौर दिन से चंद्र दिन छोटा होता है इसलिए कई बार एक दिन में दो या तीन तिथियां भी पड़ सकती हैं। इसी आधार पर तिथियों की तीन स्थितिया बनती हैं

तिथि और नक्षत्र
सुधि, क्षय, वृद्धि

तिथि के प्रारम्भ से अंत के मध्य एक बार सूर्योदय होता है उसे सुधि तिथि कहते हैं
जब तिथि के मध्य सूर्योदय होता ही नहीं यानी वह सूर्योदय के बाद शुरू होकर अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है उसे क्षय तिथि कहते हैं या तिथि का क्षय होना कहते हैं

तीसरी जब एक दिन में तीन तिथियां हो जाती है और तीसरी स्थिति वो जिसमें दो सूर्योदय हो जाए उसे तिथि वृद्धि कहते हैं।
ये सभी तिथियां किसी न किसी ऊर्जा को समहित रखती हैं इन के अपने देव या कहे तो स्वामी होते हैं.
                                                         

                              हमारी तिथियां और उन के स्वामी

तिथि स्वामी
प्रतिपदा अग्नि
द्वितीया ब्रह्मा
तृतीया गौरी
चतुर्थी गणेश
पंचमी शेषनाग
षष्ठी कार्तिकेय
सप्तमी सूर्य
अष्टमी शिव
नवमी दुर्गा
दशमी काल
एकादशी विश्वदेव
दवादाशी विष्णु
त्रयोदाशी कामदेव
चतुर्दाशी शिव
पूर्णिमा चन्द्रमा
अमावस्या पितर
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