फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा तक रहता होलाष्टक , होलाष्टक का अंत होलिका दहन के साथ हो जाता है. यह समय बहुत उग्र तथा नकारात्मक उर्जा से भरा रहता है
इस वर्ष 7 मार्च से शुरू हो कर नाकारात्मक समय 13 मार्च फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन के साथ समाप्त होगा ,13 को होलिका दहन और 14 को रंग खेला जायेगा,
होलाष्टक 7 मार्च,से ही शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किये जायेगे, किसी भी प्रकार कि नयी शुरुवात इस समय नहीं करनी चाहिए, अष्टमी से ही प्रत्येक ग्रह अपने उग्र स्वरुप और ऋणात्मक ऊर्जा की वृद्धि के साथ होते हैं, इस लिये इस अवधि मे उत्तेजना और जोखिम की प्रवृती से बचना चाहिये साथ ही बदलाव को लेकर सजग रहना चाहिये,
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं।
इस कारण इन 8 दिनों मे निर्णय गलत होने, और नकारात्मक प्रभाव बढ़ जाते है जिस कारण शुभ काम रोक दिये जाते है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
राक्षस राज हिरण्य कश्यप जो अपने आप को भगवान मानता था, और विष्णु भक्त अपने पुत्र को भी अपना भक्त बनाना चाहता था
वह अपने विष्णु भक्त पुत्र प्रहलाद्ध को घोर यातनाएं देकर डराकर, धमकाकर अपने अधीन कर विष्णु भक्ति खत्म करना चाहता था
इस कारण उन्होंने प्रहलाद को आठ दिन घोर यातनाएं दीं. और अंत मे अपनी बहन होलिका से उसे आग मे जला कर मारने का प्रयास किया जिस मे वह सफल नहीं हो पाया और विष्णु कृपा से प्रहलाद के प्राणो की रक्षा हुयी और अधर्म, होलिका के रूप मे अग्नि मे आहुति रूप मे स्वाह हुआ,
वहीं भगवान शंकर ने काम देव को भस्म कर दिया जिस की वजह से धरती पर कामनाओं और प्रसन्नता का अंत होगया और इन 8 दिनों मे नकारात्मक ऊर्जा इतनी बढ़ गयीं की खुशियों और आनंद की अनुभूति समाप्त हो, तब भगवान ने पृथ्वी पर आनंद उत्साह को पुनर स्थापित करने के लिये काम देव को जीवन दान दे कर पुनः जीवित किया और उसी दिन को हम होली के उत्सव के रूप मे मनाते हैं
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं. जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है ।
जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए |