Durga Kavach श्री दुर्गा कवच पाठ हिंदी में – ।। दुर्गा माता की जय ।।

maa durga kavach

।। दुर्गा कवच ।।

shree durga kavach

मार्कण्डेय जी ने कहा:  पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा सभी मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट न किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये|

ब्रह्मा जी बोले:  ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उद्धार करने वाला है| महामुने! उसे श्रवण करो|

           देवी की नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं| उनके पृथक-पृथक (अलग-अलग) नाम बतलाये जाते हैं. प्रथम नाम शैलपुत्री है, दूसरी मूर्ति का नाम ब्रह्मचारिणी है, तीसरा स्वरुप चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध है, चौथी मूर्ति को कूष्मांडा कहते हैं| पांचवी दुर्गा का नाम स्कंदमाता है, देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं, सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरुप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध है| नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है| ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं|

          जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रु से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी अमंगल नहीं होता| युद्ध के समय में संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखाई देती| उन्हें शोक दुःख और भय की प्राप्ति नहीं होती| जिन्होंने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है| देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिंतन करते हैं, उनकी तुम निस्संदेह रक्षा करती हो|

चामुण्डा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं, वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं, ऐन्द्री का वाहन ऐरावत (हाथी) है, वैष्णोदेवी गरुड़ पर ही आसन जमाती हैं| माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं, कौमारी का वाहन मयूर है| भगवान् विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं| वृषभ पर आरूढ़ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है, ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं|

इस प्रकार ये सभी मातायें सब प्रकार की योग शक्तियों से सम्पन्न हैं. इनके सिवा और भी बहुत सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं| ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोध में भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी हुई दिखाई देती हैं| ये शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु, पाश, कुंत और त्रिशूल एवं उत्तम शारंग धनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथों में धारण करती हैं| दैत्यों के शरीर का नाश करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना! यही उनके शास्त्र धारण का उद्देश्य है |

महान रौद्ररूप, अत्यंत घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवी! तुम महान भय का नाश करने वाली हो तुम्हें नमस्कार है| तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है| शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बिके! मेरी रक्षा करो| पूर्व दिशा में ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति) मेरी रक्षा करें| अग्निकोण में अग्निशक्ति मेरी रक्षा करें| दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्य कोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करें| पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्य कोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें| उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी रक्षा करें| ब्रह्माणि! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करें| इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुंडा देवी दासों दिशाओं से मेरी रक्षा करें, जया आगे से और विजया पीछे की और से मेरी रक्षा करें|

वाम भाग में अजित और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करें| उद्योतिनी शिखा की रक्षा करें| उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें | ललाट में मालाधारी रक्षा करें और यशस्विनी मेरी भौहों का संरक्षण करें| भौहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघंटा देवी रक्षा करें| दोनों नेत्रों के मध्य भाग में शंखिनी और कानों में द्वारवासिनी रक्षा करें| कालिका देवी कपोलों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूल की रक्षा करें| नासिका में सुगंधा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करें| नीचे के ओठ में अमृतकला तथा जिह्वा में सरस्वती देवी रक्षा करें| कौमारी दाँतों की और चंडिका कंठप्रदेश की रक्षा करें| चित्रघंटा गले की घांटी की और महामाया तालु में रहकर रक्षा करें| कामाक्षी ठोढ़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें| भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदंड) में रहकर रक्षा करें| कंठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और कंठ की नली में नलकूबरी रक्षा करें| दोनों कधों में खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी रक्षा करें| दोनों हाथों में दंडिनी और अँगुलियों में अम्बिका रक्षा करें| शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें| कुलेश्वरी कुक्षि (पेट) में रहकर रक्षा करें| महादेवी दोनों स्तनों की और शोकविनासिनी देवी मन की रक्षा करें|

ललिता देवी ह्रदय में और शूलधारिणी उदार में रहकर रक्षा करें | नाभि में कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करें| पूतना और कामिका लिंग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें| भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें| सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिंडलियों की रक्षा करें | नारसिंही दोनों घुट्टियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें| श्रीदेवी पैरों की अँगुलियों में और तलवासिनी पैरों के तलुओं में रहकर रक्षा करें | अपनी दाढ़ों के कारण भयंकर दिखने वाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करें| रोमावलियों के छिद्रों में कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करें| पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस, हड्डी और मेद की रक्षा करें| आतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करें | मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूणामणि देवी स्थित होकर रक्षा करें| नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें| जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्य देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें | ब्रह्माणि! आप मेरे वीर्य की रक्षा करें, छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें |

हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करें| कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याणशोभना मेरे प्राण की रक्षा करें | रस, रूप, गंध, शब्द और स्पर्श- इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें | वाराही आयु की रक्षा करें, वैष्णवी धर्म की रक्षा करें तथा चक्रिणी देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्या की रक्षा करें | इंद्राणी! आप मेरे गोत्र की रक्षा करें, चण्डिके! तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो| महालक्ष्मी पुत्रों की रक्षा करे और भैरवी पत्नी की रक्षा करे | मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करे| राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करे तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजय देवी सम्पूर्ण भयों से रक्षा करें | देवि! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो; क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो |

यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी ना जाय, कवच का पाठ करके ही यात्रा करे| कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है, वहां-वहां उसे धन लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है| वह जिस-जिस अभीष्ट वास्तु का चिंतन करता है, उस-उस को निश्चय ही प्राप्त कर लेता है| वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान ऐश्वर्य का भागी होता है | कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है| युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय होता है |

देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है| जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है, उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता| इतना ही नहीं, वह अमृत्यु से रहित हो सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है  | मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियां नष्ट हो जाती हैं| कनेर, भांग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, सांप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जंगम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष! ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई भी असर नहीं होता |

इस पृथ्वी पर मारण, मोहन, आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने मंत्र-यंत्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं| ये ही नहीं, पृथ्वी पर विचारने वाले ग्राम देवता, आकाशचारी देवविशेष, जल के सम्बन्ध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता | अपने जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुलदेवता, माला (कंठमाला आदि), डाकिनी, शाकिनी, अंतरिक्ष में विचारने वाली भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी ह्रदय में कवच धारण किये रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं| कवचधारी पुरुष को राजा से सम्मान-वृद्धि प्राप्त होती है| यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है |

कवच का पाठ करने वाला पुरुष अपनी कीर्ति से विभूषित भूतल पर अपने सुयश के साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त होता है| जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों (जंगलों) सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परंपरा बनी रहती है, फिर देह का अंत होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से उस नित्य परमपद को प्राप्त होता है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है | वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता और कल्याणमय शिव के आनंद का भागी होता है |

।। इति श्री देवी कवच संपूर्ण ।।

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