भद्रा भगवान सूर्य और छाया की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं। अपने भाई शनिदेव की तरह ही भद्रा का स्वभाव भी बहुत कठोर माना जाता है।
वह हर शुभ कार्य में बाधा डालती थीं। ऐसे में उनके पिता सूर्यदेव ने भ्रदा पर नियंत्रण पाने के लिए ब्रह्माजी से मदद मांगी। इसलिए ब्रह्माजी ने उन्हें नियंत्रित करने के लिए, एक निश्चित समय अवधि पर, एक निश्चित स्थान पर रुकने का निर्धारण किया
इसी कारण विशिष्ट करण को भद्रा काल निर्धारित किया गया और क्रमशः भद्रा पृथ्वी लोक स्वर्गलोक और पाताल लोक मे वास करती हैं
जब चंद्रमा, मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक राशि में स्थित होता है तो भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है।
जब चंद्रमा, कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में स्थित होता है तब भद्रा का वास पाताल लोक में माना जाता है।
भद्रा जिस लोक मे व्याप्त हो उसके लोक का अमंगल करती हैं, किसी भी शुभ और मांगलिक कामो की शुरुवाय भद्रा काल. मे नहीं की जाती हैं