वास्तु

वास्तु मातानुसार घर बनवाने के लिए किस तरह भूमि की अनुकूलता को समझें

भूमि-परीक्षा

भूमि के मध्य में एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा गड्ढा खोदे। खोदने के बाद निकाली हुई सारी मिट्टी पुनः उसी गड्ढे में भर दे। यदि घड़ा भरने से मिट्टी शेष बच जाय तो वह उत्तम भूमि है। यदि मिट्टी गड्ढे के बराबर निकलती है तो वह मध्यम भूमि है और यदि गड्ढे से कम निकलती है तो वह अधम भूमि है।

दूसरी विधि
उपर्युक्त प्रकारसे गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर दे और उत्तर दिशा की ओर सौ कदम चले, फिर लौटकर देखे। यदि गड्ढे में पानी उतना ही रहे तो वह उत्तम भूमि है। यदि पानी कम (आधा) रहे तो वह मध्यम भूमि है और यदि बहुत कम रह जाय तो वह अधम भूमि है। अधम भूमि में निवास करने से स्वास्थ्य और सुख की हानि होती है। ऊसर, चूहों के बिलवाली, बाँबीवाली, फटी हुई, ऊबड़-खाबड़, गढ़वाली और टीलों वाली भूमि का त्याग कर देना चाहिये। जिस भूमि में गड्ढा खोदने पर कोयला, भस्म, हड्डी, भूसा आदि निकले, उस भूमि पर मकान बनाकर रहने से रोग होते हैं तथा आयुका ह्रास होता है।

भूमिकी सतह
पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब दृष्टियों से लाभप्रद होती है। आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को उत्पन्न करने वाली होती है। दक्षिण तथा आग्नेय के मध्य नीची और उत्तर एवं वायव्य के मध्य ऊँची भूमि का नाम ‘रोग की वास्तु’ है, जो रोग उत्पन्न करती है

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